लोक निर्माण विभाग में नीतिगत अस्थिरता

25/02/2025 10:14 PM Total Views: 11261
- तकनीकी सलाहकार वीके सिंह के कार्यकाल विस्तार पर उठे सवाल
- अब तक जितने लिए निर्णय सब पर पानी फिरा
लखनऊ। उत्तर प्रदेश लोक निर्माण विभाग (PWD) में हाल ही में लिए गए कई तकनीकी और नीतिगत निर्णयों को वापस लेना पड़ा है। जिससे विभाग की कार्यशैली पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं। तकनीकी सलाहकार वीके. सिंह के कार्यकाल को एक वर्ष और बढ़ाने की तैयारी की जा रही है, लेकिन उनकी भूमिका को लेकर विवाद गहराता जा रहा है।
05 वर्षीय अनुरक्षण भुगतान प्रक्रिया में बदलाव से मचा हड़कंप
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प्रदेश में सभी सड़कों के अनुबंधों में 05 वर्षीय अनुरक्षण अवधि (Defect Liability Period) लागू करने की नीति 16 जनवरी 2024 को मंत्रिपरिषद से अनुमोदन के बाद जारी की गई थी। हालांकि, ठेकेदार संगठनों और क्षेत्रीय अधिकारियों ने इस व्यवस्था को अव्यवहारिक बताते हुए विरोध जताया।
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इसके बाद विवादों में रहे प्रमुख अभियंता (विकास) एवं विभागाध्यक्ष एस.पी. सिंह ने शासनादेश के विपरीत 24 दिसंबर 2024 को एक नया पत्र जारी कर दिया, जिसमें 05 वर्षीय अनुरक्षण को घटाकर पुनः 02 वर्ष करने का निर्देश दिया गया। इससे विभागीय अनुमोदनों में देरी हुई और कई परियोजनाओं की स्वीकृति बाधित हो गई।
एकीकृत दर अनुसूची (Integrated SOR) पर भी विवाद
प्रमुख अभियंता (विकास) एवं विभागाध्यक्ष 31 अगस्त 2024 को एकीकृत एस.ओ.आर. का प्रस्ताव नियोजन विभाग को भेज चुके थे, जिसे 24 सितंबर 2024 को लागू करने का आदेश दिया गया।
हालांकि, इस नई व्यवस्था में हॉट मिक्स प्लांट के रेट लगभग 07 गुना तक बढ़ा दिए गए, जिससे विभाग में हड़कंप मच गया। भारी विरोध और शिकायतों के बाद 24 फरवरी 2025 को इसे वापस लेना पड़ा। इसके अगले ही दिन, मुख्य सचिव ने स्पष्टीकरण जारी किया कि यह नीति वित्तीय नियमावली (Financial Handbook) के अनुरूप नहीं थी, जिससे एक बार फिर लोक निर्माण विभाग की कार्यशैली पर सवाल उठने लगे।
तकनीकी सलाहकार वीके सिंह की भूमिका पर सवाल
सूत्रों के अनुसार, तकनीकी सलाहकार वी.के. सिंह किसी भी नीति निर्माण प्रक्रिया में औपचारिक हस्ताक्षर नहीं करते, लेकिन मौखिक रूप से हस्तक्षेप करते हैं। इसके बावजूद, उनका कार्यकाल 65 वर्ष की आयु पार करने के बाद भी एक वर्ष बढ़ाने की तैयारी हो रही है।
विभाग की छवि लगातार खराब हो रही है, चाहे हजारों करोड़ के बजट समर्पण का मामला हो या नीतियों के बार-बार बदले जाने का। मुख्यमंत्री के पास लोक निर्माण विभाग होने के बावजूद इस प्रकार की नीतिगत अस्थिरता चिंता का विषय बन गई है।
सरकार को अब यह तय करना होगा कि विभाग की कार्यकुशलता और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक सुधार किए जाएं और तकनीकी सलाहकार की भूमिका पर पुनर्विचार किया जाए।

